ज़रा तस्व्वुर कीजिए । एक ऐसा इलाका है जहाँ कभी बारिस
नहीं होती । वहाँ के लोग कृषिकार्य के लिए जमीन के या तालाब के पानी इस्तेमाल करते हैं । बारिस की तस्व्वुर भी उनके पास नहीं । आप वहाँ एक दिन गए तो एक किसान अपने बेटे को डाँट रहा था कि जल्दी करो , थोड़ा और ज्यादा मेहनत करो , खेत में जितना पानी चाहिए उतना अभी नहीं हुआ हैं । अगर पानी की कमी हो गई तो पौधे मर जाएगें , जो करना है अब तुम्हे हिं करना है , तुम्हारे खेती के लिए कोई आसमान से पानी नहीं बरसने वाला !!
इस आखिरी लाइन पर आप गौर कीजिए । हम भी यही डायलाग मारते हैं की खाना जल्दी पकाओ । भूख लगी हैं । आसमान से कोई खाने के प्लेट नहीं उतरने वाले । यक़ीन जानिए अगर हमारे खाने के लिए अल्लाह तआला आसमान से फरिश्तों के जरिए पका पकाया खाने का प्लेट भी उतार देता तब भी हमें कोई हैरत नही होती । क्योंकि आसमान से हमारे रिज़्क़ के लिए बारिस होती हैं और उसे देख कर हमे कोई ताज़्ज़ुब नही होता तो आसमान से खाने के प्लेट भी उतर जाती तो हमे कोई ताज़्ज़ुब नही होती !!
और बनी इस्राइल के साथ ये वाक़या गुज़र भी चुका है । उनके खाने के लिए आसमान से मन्न सल्वा नाज़िल होती रही मगर फिर भी वह नाशुक्रा निकलें । क्योंकि हक़ीक़त यही है कि इंसान अपने रब का बहुत बड़ा नाशुक्रा हैं । औऱ जो इंसान अपने रब का नाशुक्रा हैं उससे बन्दों के लिए शुक्रगुज़ारी और वफादारी की उम्मीद