!السلام علیکم میرے پیارے ساتھیو
آپ سبھی کا میرے بلوغ میں دل سے خوش آمدید
امید کرتا ہوں کہ آپ سب خیر و عافیت سے ہوں گے
میرا دل کبھی کبھی کرتا ہے اللہ کہ میں اس دنیا سے دور بھاگ جاؤں۔ یہ بہت عجیب دنیا ہے اللہ! یہاں ہر ایک بس اپنے جذبات کو satisfy کرنا جانتا ہے اللہ۔۔ کیوں لوگ دوسروں کے جذبات کا خیال نہیں رکھتے؟؟؟ آپ مالک ہو کر ہم غلاموں کے جذبات کا اتنا خیال رکھتے ہیں کہ قرآن میں جگہ جگہ مومنوں کو صبر، توکل اور غم سے نکلنے کے طریقے بتاتے ہیں، مگر اللہ یہ آپکے غلام کیسے ہیں؟ جو ایک دوسرے پر کوئی ملکیت بھی نہیں رکھتے مگر دل ایسے توڑتے ہیں کہ روح چیخ اٹھتی ہے۔ کاش کہ اللہ یہ جانتے ہوتے کہ انکے مالک نے تو یہ سب نہیں سکھایا انھیں! کاش کہ انھوں نے وہ سیکھا ہوتا اللہ جو آپ نے سکھایا!!
الرحمان۔۔علم القران۔
آپکی رحمت کی سب سے بڑی نشانی کہ آپ نے ہمیں قرآن دیا، اسکو سکھایا۔
مگر ہم نے دنیا کا ہر چھوٹا بڑا علم حاصل کیا۔
نہ حاصل کیا تو ہم غلاموں نے مالک کی پہچان کا علم۔۔
نہ جانی تو مخلوق نے اپنے خالق کی قدر!
دوسروں کو خود غرض کہنے والا انسان آپکے معاملے میں کتنا خود غرض نکلا اللہ!!
سخت پتھروں کو کاٹنے والا اپنے دل کی سختی دیکھنا بھول گیا۔
اللہ کیا واقعی ہی آپکے غلاموں کو آپکا وجود محسوس نہیں ہوتا؟
کیا کبھی انھوں نے سانس کو روک کر نہیں دیکھا؟ کیا کبھی انھوں نے اپنی انگلیوں کو نہیں دیکھا کہ کیسے لمحات میں سوچے بغیر چلنے لگتی ہیں؟ کیا کبھی انھوں نے آسمان کو نہیں دیکھا؟ کیا کبھی انھوں نے نہیں سوچا کہ اتنے بڑے وجود کو وہ کیسے اپنے دو پیروں پر اٹھا کر چلتے پھرتے ہیں؟
کیا آج انسان اتنا غافل ہو گیا اللہ کہ اسے آپکے بارے میں سوچنے کا ہی وقت نہ ملا؟؟
جو آپکو ڈھونڈتا ہے وہ پا لیتا ہے، جو چاہتا ہے وہ محسوس کر لیتا ہے۔ میں نے آپکو پایا اللہ! ہر درد میں، اپنے ہر آنسو میں، قرآن کی آواز پر تیز ہوتی دھڑکن میں۔ میں نے محسوس کیا اللہ آپکو اکیلے میں گڑگڑا کر مانگی دعاؤں کے سنے جانے میں، میں نے ہر جگہ آپکا نشان پایا اللہ!
کاش کہ غلام مالک کی طرف رہتے وقت میں پلٹ آئیں اللہ!
ورنہ قھار کی صفت تو بھول بیٹھے ہیں، بس یاد ہے تو رحمان۔۔۔اعتدال میں جینا تو بالکل ہی چھوڑ دیا ہے تیرے بندوں نے۔ نظر آتی ہے تو بس اپنی خواہش اللہ! دین میں بھی بس اپنی خواہش۔۔الہ تو آپکو بنانا تھا، ہم اپنے نفس کو بنا بیٹھے اللہ!!!
وہ سسکیوں سے روتی ہوئی میکانکی انداز میں اپنی ڈائری پر لکھتی جا رہی تھی۔ مسز ریان کی باتوں سے فاطمہ کا دل بہت ٹوٹ چکا تھا۔
اسے بہت دکھ تھا اپنے ماضی پر، اپنے حال پر، لوگوں پر۔۔ وہ لوگ جو نہ خود قرآن سیکھتے تھے اور نہ سیکھنے دینا چاہتے تھے۔
۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔
آج اسکی ماں کی حالت کافی بہتر ہو رہی تھی۔
"امی ڈاکٹرز نے تسلی دی ہے۔ ان شاءاللہ جلد ہی آپکو ہاسپٹل سے ڈسچارج کر دیں گے۔"
شہریار اپنی ماں کا رگوں کے جال سے بھرپور، بڑھاپے کے بےکیف رنگ میں رنگا ہاتھ پکڑ کر سہلا رہا تھا۔
"واقعی بیٹا اب بس ہو چکی ہے۔ یہاں پورا مہینہ ہو گیا۔ اردگرد کے مریضوں کو دیکھتی ہوں تو حیرت ہوتی ہے کہ اس جگہ سے باہر ہم کبھی اپنی صحت کی قدر نہیں کرتے اور یہاں آؤ تو ایسے لگتا ہے ہر کوئی بس جی جان کی بازی لگا رہا ہے خود کو اس قید خانے سے نکالنے کے لئیے۔"
انکی جھریوں زدہ آنکھوں میں نمی اتر آئی تھی۔ شہریار کو آج اپنی ماں بہت کمزور اور ضعیف لگیں۔ اس ایک مہینے نے انکے چہرے کی رونق چھین لی تھی۔
"واقعی ہم کہاں قدر کرتے ہیں امی۔ اللہ سب کو عافیت دیں۔"
"آمین! بیٹا میری زندگی کا کچھ نہیں پتہ۔ بس میں چاہتی ہوں جلد از جلد تم دونوں کو اپنے گھر کا کر جاؤں۔"
شہریار اپنی ماں کی بات سن کر ٹھٹکا۔ سیاہ عبایا والی لڑکی کا سایہ اسکے دماغ میں ایک لمحہ کے لہرایا۔ اس نے فوراً سے سر جھٹک کر کہا۔
"امی آپ ٹھیک ہو جائیں۔ ان شاءاللہ پہلے ہم مل کر نائلہ کو اسکے گھر کا کریں گے پھر میرا بھی بعد میں سوچ لیں گے۔"
ماؤں کو بن بیاہی بیٹیوں کی فکریں ہی کھا جاتی ہیں۔ نائلہ کے رشتے کی بات سے انھوں نے بھی ٹھنڈی آہ لی اور آنکھوں کی نمی چھپاتے ہوئے کروٹ بدل لی۔
۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔
ہاسپٹل سے وہ اپنی سوچوں میں گم نکلا۔
دور دور سے عصر کی اذانوں کی آواز آ رہی تھی۔
اس نے جیب سے سگریٹ نکال کر سلگائی اور کنپٹی کو انگلیوں سے مسلنے لگا۔
اس نے پہلے بھی عبایا والی لڑکیاں دیکھی تھیں مگر اس میں کیا تھا جو اسے اسکی طرف کھینچے چلے جا رہا تھا؟ اسکی تو آنکھیں بھی نظر نہیں آ رہی تھیں۔
اس نے کش لگاتے ہوئے دھواں ہوا میں اڑایا۔ وہ سگریٹ کا عادی نہیں تھا مگر کبھی کبھی بہت پریشانی میں پی لیا کرتا تھا۔ ماں کی اس حالت کے بعد اب وہ ہر تیسرے چوتھے دن ایک سگریٹ پینے لگا تھا۔ اسے معلوم تھا کہ وہ ٹھیک نہیں کر رہا مگر ان دنوں وہ جن الجھنوں میں گرفتار تھا بے چینی اسکے رگ و پے میں دوڑ رہی تھی۔
وہ اپنے ہی خیالوں میں مسجد کے سامنے سے گزر گیا۔ نمازی مسجد میں جا رہے تھے اور شہریار مسجد سے دور چلتا گیا، یہ سوچے بغیر کہ مستقبل کے بننے والے گھر کے خواب دیکھتے دیکھتے اس نے عصر کی نماز ضائع کر کے اپنا اہل و مال ہلاک ہونے کی وعید کا ٹیگ خود پر لگا لیا تھا۔
۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔
"آسمان پر وہ دو الفاظ چمک رہے تھے، وہ مسلسل رسی کو مضبوطی سے پکڑے اوپر جانے کی ان تھک کوشش کر رہی تھی۔ اسکے ہاتھ زخمی ہو چکے تھے۔ وہ جیسے جیسے اوپر جا رہی تھی اندھیرا کم ہوتا جا رہا تھا۔ اسے اس روشن آسمان تک پہنچنا تھا اور قریب جا کر ان الفاظ کو پڑھنا تھا کہ۔۔۔ اچانک ایک چمگاڈر آئی اور اس سے ٹکرائی۔"
وہ ہڑبڑا کر اٹھ بیٹھی۔ فاطمہ کا جسم پسینے سے شرابور تھا۔ رات کے تین بج رہے تھے۔
"یہ پھر سے؟ دوسری بار یہی خواب کیوں؟"
"قرت نے مجھے بتایا تھا کہ رسی قرآن ہے، مگر وہ دو الفاظ کیا ہیں؟؟ اور یہ چمگاڈر؟؟ اللہ مجھے سمجھ نہیں آتی ایسی الجھی باتیں۔"
اس نے اداس ہوتے لہجے میں الجھتے ہوئے خود سے سوچا
مگر پچھلی بار کی طرح وہ آج دوبارہ نہیں سوئی۔ وہ اٹھی اور واش روم کی طرف وضو کرنے کے لیے گئی۔
آج اس نے تہجد پڑھ کر اپنے رب کو منانا تھا کہ وہ اسکی فیملی کا دل نرم کر دیں تاکہ وہ قرآن سیکھ سکے۔
शांति आप पर हो मेरे प्यारे दोस्तों
आप सभी का मेरे बरोघ में स्वागत है
आशा है आप सब अच्छे होंगे
मेरा दिल कभी-कभी चाहता है कि मैं इस दुनिया से भाग जाऊं। यह बड़ी अजीब दुनिया है! यहां हर कोई बस अपनी भावनाओं को संतुष्ट करना जानता है। लोग दूसरों की भावनाओं की परवाह क्यों नहीं करते ??? मालिक होने के नाते हम गुलामों की भावनाओं की इतनी परवाह करते हैं कि क़ुरआन में हम ईमानवालों को सब्र, भरोसे और ग़म से निकलने के उपाय बताते हैं, लेकिन अल्लाह कैसे ये तुम्हारे ग़ुलाम हैं? जो एक-दूसरे के मालिक भी नहीं हैं लेकिन दिल तोड़ देते हैं ताकि रूह चीख उठे। काश अल्लाह को पता होता कि उनके मालिक ने उन्हें यह सब नहीं सिखाया! काश उन्होंने वो सीख लिया होता जो आपने सिखाया !!
अल-उर-रहमान कुरान का ज्ञान।
आपकी दया का सबसे बड़ा संकेत यह है कि आपने हमें कुरान दिया और सिखाया।
लेकिन हमें दुनिया की हर छोटी बड़ी जानकारी मिली।
न मिले तो हम गुलाम मालिक की पहचान जानते हैं।
यदि प्राणी को अपने रचयिता का मूल्य नहीं पता !
एक इंसान जो दूसरों को स्वार्थी कहता है, वह आपके मामले में कितना स्वार्थी निकला!
जो कठोर पत्थरों को काटता है, वह अपने हृदय की कठोरता को देखना भूल जाता है।
अल्लाह क्या तुम्हारे ग़ुलामों को सच में तुम्हारे वजूद का एहसास नहीं है?
क्या उन्होंने कभी अपनी सांस रोक रखी है? क्या उन्होंने कभी अपनी उंगलियों को देखा है कि वे पलों में बिना सोचे-समझे कैसे हिलना शुरू कर देते हैं? क्या उन्होंने कभी आकाश नहीं देखा? क्या उन्होंने कभी सोचा है कि वे इतने बड़े प्राणी को अपने दोनों पैरों पर कैसे उठाकर चलते हैं?
क्या आज इंसान इतना बेखबर हो गया है कि उसके पास आपके बारे में सोचने का समय नहीं था?
जो खोजता है वह तुम्हें पाता है, जो चाहता है वह अनुभव करता है। मैंने तुम्हें अल्लाह पाया! हर दर्द में, हर आंसू में, कुरान की धड़कन में। मैंने महसूस किया कि एकांत में मैंने जो प्रार्थनाएँ कीं, उन्हें सुनकर अल्लाह मुझे हर जगह तेरी निशानी मिल गई, अल्लाह!
मेरी इच्छा है कि दास अपने स्वामी के पास तब लौट आए जब वह जीवित था!
नहीं तो वे क्रोध के गुण को भूल गए हैं, लेकिन रहमान को ही याद करते हैं।तुम्हारे दासों ने संयम में रहना बिलकुल छोड़ दिया है। देखे तो बस तेरी इबादत अल्लाह ! धर्म में भी बस अपनी ख्वाहिश, खुदा बनाना था, हमने खुद को खुदा बनाया!!!
वह रो रही थी और अपनी डायरी में यंत्रवत् लिख रही थी। श्रीमती रयान की बातों से फातिमा का दिल टूट गया।
वह अपने अतीत, अपने वर्तमान, लोगों को लेकर बहुत दुखी था। वे लोग जिन्होंने स्वयं कुरान नहीं सीखा और इसे सीखना नहीं चाहते थे।
.. .. ..
आज उसकी माँ की हालत में सुधार हो रहा था।
"एमी, डॉक्टरों ने आपको आराम दिया है। भगवान की इच्छा है, आपको जल्द ही अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी।"
शहरयार रगों से भरी अपनी माँ का हाथ थामे, बुढ़ापे के फीके रंग में रंगी हुई थी और उसे सहला रही थी।
"वास्तव में, बेटा, अब बहुत हो गया। यहाँ पूरा एक महीना हो गया है। मैं रोगियों को देखता हूँ, और मुझे आश्चर्य होता है कि इस जगह के बाहर हम कभी भी अपने स्वास्थ्य को महत्व नहीं देते हैं और यहाँ आते हैं, हर कोई ऐसा लगता है। खुद को पाने की कोशिश कर रहा है। इस जेल से बाहर।"
उसकी झुर्रीदार आँखों में नमी थी। शहरयार आज अपनी मां को बहुत कमजोर और कमजोर महसूस कर रहा था। इस एक महीने ने उनके चेहरे की शोभा छीन ली थी।
"वास्तव में, हम माँ की सराहना कहाँ करते हैं। भगवान सबका भला करे।"
"आमीन! बेटा, मैं अपने जीवन के बारे में कुछ नहीं जानता। मैं बस आप दोनों को जल्द से जल्द अपना घर बनाना चाहता हूं।"
अपनी मां की बातें सुनकर शहरयार हैरान रह गए। काली अबाया वाली लड़की की परछाई पल भर के लिए उसके दिमाग में तैरने लगी। उसने तुरंत सिर हिलाया।
"माँ, तुम ठीक हो जाओगी। भगवान की मर्जी, पहले हम नैला को उसके घर ले जाएंगे, फिर हम बाद में मेरे बारे में सोचेंगे।"
माताओं को अविवाहित बेटियों की चिंता है। उसने नैला के रिश्ते की बातों से एक ठंडी आह भी ली और आँखों में नमी छुपाते हुए अपना क्रॉच बदल लिया।
..
वह अपने ख्यालों में खोए हुए अस्पताल से चला गया।
अस्र की नमाज़ की आवाज़ दूर से आ रही थी।
उसने अपनी जेब से एक सिगरेट निकाली, उसे जलाया और सिगरेट को उंगलियों से रगड़ने लगा।
उसने पहले अबाया लड़कियों को देखा था, लेकिन उसके बारे में ऐसा क्या था जो उसे अपनी ओर खींच रहा था? यहां तक कि उनकी आंखें भी नहीं दिख रही थीं।
उसने धुंआ हवा में उड़ा दिया। उन्हें सिगरेट की लत नहीं थी लेकिन कभी-कभी मुसीबत में पड़ने पर वह पी जाते थे। अपनी मां की इस हालत के बाद अब वह हर तीसरे से चौथे दिन सिगरेट पीने लगा। वह जानता था कि वह अच्छा नहीं कर रहा है, लेकिन इन दिनों जो भ्रम था, उसने उसकी रगों में चिंता दौड़ा दी।
वह अपने ही ख्यालों में मस्जिद के सामने से गुजरा। नमाज़ पढ़ने वाले मस्जिद जा रहे थे और शहरयार मस्जिद से चले गए, बिना यह सोचे कि अपने भविष्य के घर का सपना देखते हुए, उन्होंने खुद को अस्र की नमाज़ को याद करके अपने परिवार और संपत्ति को नष्ट करने के वादे के साथ टैग किया था।
..
"वे दो शब्द आकाश में चमक रहे थे, वह लगातार रस्सी को पकड़ कर ऊपर चढ़ने की अथक कोशिश कर रही थी। उसके हाथ घायल हो गए थे। जैसे-जैसे वह ऊपर गई, उसका रंग गहरा होता जा रहा था। एक को उज्ज्वल आकाश तक पहुंचना था और पास जाना था और इन शब्दों को पढ़ो। अचानक एक बल्ला आया और उसे मारा।"
वह हड़बड़ा कर उठ बैठी। फातिमा का शरीर पसीने से भीग गया था। रात के तीन बजे थे।
"यह फिर से? वही सपना दूसरी बार क्यों?"
"कुरात ने मुझे बताया कि रस्सी ही कुरान है, लेकिन वो दो शब्द क्या हैं? और यह बल्ला? भगवान, मुझे ऐसी भ्रमित करने वाली बातें समझ में नहीं आती हैं।"
उसने उदास स्वर में मन ही मन सोचा
लेकिन पिछली बार की तरह आज फिर नहीं सोई। वह उठी और स्नान करने के लिए वाशरूम चली गई।
आज, उसने तहज्जुद को अपने परिवार के दिल को नरम करने के लिए अपने भगवान को मनाने के लिए पढ़ा ताकि वह कुरान सीख सके।
وعلیکم السلام و رحمۃ اللہ و برکاتہ
ماشاءاللہ
میں کافی عرصے کے بعد بلرٹ پہ آیا ہوں۔
آپ کی اردو میں پوسٹ دیکھ کر بہت خوشی ہوئی۔
!شکریہ جناب