तौहीद।

in powerclub •  6 months ago 

गुजारे तिन साल इस रंग से ईमान वालों
दिखा दी शाने ईन्तेक्लाल अपनी आँ वालों ने

तौहिद के लगवी मना एक जन्ना - शरियत मे तौहिद कहते हैं अल्लाह ताला तो एक जन्ना - एक मन्ना और सिर्फ उसी की इबादत करना और उसके तमाम आदमाओ व सिफ़त को मिन व अन तस्लीम करना।

तौहिद का इक़रार ये सब से पहला फरिजा है जो बन्दे पर आईद होता है। और इसी तौहिद को मन्ने के लिये अल्लाह रब्बुल आलमीन ने जिन व इन्स की तख़लीक की, और फिर इसी तौहिद को सिखाने और समझाने के लिए अल्लाह रब्बुल आलामी. ने कम व बेश एक लाख चौबीस हजार आंबीया व रसूल को मबउस फरमाया । सारे आंबिया की दावत एक ही दावत थी,और वह दावत तौहिद है।
जैसा की कुरआन करीम के अंदर अल्लाह तबारक व ताला इरशाद फरमा ता है।

लकद बाआस्ना फी कुल्लि उम्मतीन रसूलन आनी बुदुल्लाहा वाजतनीबूत्तागुत।

हसमने हर उम्मत में इक रसूल को सिर्फ ये बताने के लिए मबउस किया की वाह सिर्फ अल्लाह की इबादत करे और कुफ्रे व बातिल का इंकार करे।

तौहिद एक ऐसा इंकलाबी कलमा है,जीस के अपनाने से वाह सारे मुशरिकिन व आपस में भाई भाई बन गये - वा बरसाहा बरस से इख़्तिलाफ व इंटेशर के शिकार थे मगर कलमाये तौहिद ने इन्हे मुत्त्हिद बना दिया।
तौहिद के तस्लीम करने वाले को ऐसी दिलकश लज्जत महसूस होती है, की वह कभी भी कीसी सूरत मे अपने सीने से कलमाये तौहिद को जुदा नही कर सकता है।

बिलाल हबसी राजी अल्लाहु अन्हु की तौहिद पर नजर डालें - की इह अरब की बस्ती रतेली पत्तरिलि,और सांगलाख चट्टानो पर तड़प - तड़प कर कलमाये तोहिद का बयांग दहले एलान कर रहे हैँ।और अपनी जुबान से अहद - अहद के कलमा का इकरार करके अपने, जालिम मालिक को ये पैगाम दे रहे हैं की ए उम्माईया तु कुछ भी करले,और तु जो चाहे आजब दे दे मगर मै तौहिद से दस्त बारादर नही हो सकता।
और पियारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के भी किया कुछ नही क्या गया,मगर तौहिद के खातिर रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और मुसलमान ने इन सारे माईबुल को बर्दास्त कर लिया।

मगर अफसोस - सदा अफसोस आज हमारे समाज व मुआशारा मे तौहिद का मजहेका उड़ाया जाता है,मुसलमान तौहिद के नाम पर शिर्क व कुफ्रे और बिदाआत व खुरफात अंजाम् देते हैं।तौहिद की ध्चिया उड़ाते है,ये सब आमाल तौहिद के मनाफ़ी है।
जरूरत इस बात की है,की हम तौहिद की आजमत को समझे अपने दिलों मे तौहिद की आहमियत को जगह दे।

लिहाजा - अपने हस्सास और नाजुक वक्त मे हमारी जिम्मेदारी बनती है,की हम तौहिद की दावत को आम करे।शिर्क व कुफ्रे के खिलाफ आवाज़ बुलंद करे, तौहिद के खिलाफ उठने वाली हर आवाज़ का मुह तोड़ जवाब दे।

अल्लाह रब्बुल आलमीम से दुआ है, की आल्लाह ताला हम तामाम मुसलमानों को सही मानवि,मे सच्चि और खलिस तौहिद का पायंबर बनाये,दीन इस्लाम का मुखलिस सिप्साही बनाये।
और हमे दुनिया में जब तक जिंदा रखे तौहिद पर रखें और जब हमारी मौत हो तो कलमा तौहिद हमारी आखरी आवाज़ हो (आमीन)

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