जुल्म का लोगत मे कीसी चीज की असल मक़ाम से हटा कर रसखना है।और उसमे हसद तेजाउज दाखिल है,और जो अपनी असल जगाह ना हो, या तो उसमे काम व बेश हो जाये या बे वक़त जुल्म है।जुल्म कीसी भी सूरत में साईज नही है।और ये जबरजस्त गुन्हा है।कयामत के रोज अंधेरों का सबब होगा,यानी जुल्म पर चारो तरफ आंधेरा छाया होगा।उसे वाह रौशनी नसीब नही होगी जो ईमानदारों को हसील होगी।और अल्लाह ताला जुल्म करने वालों को मोहलत (समय )देता है, उसकी उम्र लम्बी कर देता है,ताकि उसकी जुल्म हद से ज्यादा हो जाये।और जाब बुरे काम कीसी को पकड़ लेता है, तो फिर छोड़ता नही है।
लेहाजा,जिसने अपने भाई पर या और कीसी के साथ, उसके खुन व माल के साथ जुल्म क्या है।तो उसे चाहिये की वह दिन आने से पहले ही माफी मांगले।जीस दीन जुल्म का बदला उसके नेकियों से लिया जायेगा,और उसके जुल्म के मुआफीक उस शख्स को जुल्म की नेकियां दी जाएंगे।कयामत के दीन जालिम के जुल्म का बदला होगा,उसके नेक आमाल मजूलम (जीस पर जुल्म किया जाता है) को दे दिये जाएंगे।और अगर जुल्म करने वाले के पास नेकियां न हो तो मजलूम का गुन्हा उसके ऊपर डाल कर,उसे जहन्नम में दिये जाएंगे।अल्ल्हा को नाराज कर के कीसी को खुश करना जाइज नही है।इंसान को वह काम करना चाहये,जीस मे अल्लाह ताला खुश होता है,अगर चे लोग नाराज हो जाये।क्यूंकि अल्लाह ताला खुश होता है, तो सब को खुश कर देता है।और लोगों को बुराई से उसको दूर कर देता है।और जो लोग अल्लाह को नाराज कर के लोगों को खुश कर ते हैं । हकीमो के जरिये,माल कमाने के लिए खुश करता है।अल्लाह ताला ऐसे लोगों को सुपुर्द कर देता है,यानी उनकी मदद नही करता है।लेकीन लोगों के ऊपर जुल्म करने और तकलीफ देने के लिए मुसललत कर देता है।और ऐसा शख्स कयामत के दीन सब से बत्तर होगा।मजलूम की बद्दुआ से हमेशा बचना चाहिये,क्यूंकि मजलूम की बद्दुआ जालिम पर बाहुत जल्द असर करती है।इस्लिये को वह अल्लाह ताला से अपना हक़ मांगता है,और अल्लाह ताला हक़ दर को उसके हक से नही रोकता।और जो जालिम का साथ देता है,उसका कहना मानता है।यह जानते हुए भी की व जालिम है,तो ऐसा शख्स इस्लाम से निकल जाता है।वह मुसलमान नही रहता है,काफिर हो जाता है।और अल्लाह ताला जालिम के जुल्म करने की वजह से बारिश को , रोक देता है।जीस की वजह से इंसान और जानवर सब भूक पियास बर्बाद हो जाते है।और जालिम अपने उपर जुल्म करता है,अगर चे व मजलूम का नुकसान करता है।लेकिन असल मे जालिम अपना ही नुकसान करता है,और मजलूम को अपने नुकसान का बदला जरूर मिलता है।
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