दिल्ली के महरौली में कुतुबमीनार के पास बने लौह स्तम्भ (Iron pillar) के बारे में हम बचपन से पढ़ते आये हैं। इस लौह स्तम्भ की सबसे खास बात यह है कि डेढ़ हजार वर्ष से अधिक पुराना होने के बावजूद भी इसमें जंग (Rust) नहीं लगता। महरौली लौह स्तम्भ 1600 वर्ष से अधिक पुराना है जिसे गुप्त वंश के राजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य द्वितीय ने बनवाया था। लोहे का यह खंभा दिल्ली के बाहर किसी स्थान पर लगा हुआ था जिसे करीब 1,000 साल पहले दिल्ली लाकर मेहरौली नामक स्थान पर कुतुब मीनार के बगल लगा दिया गया।
इस आयरन पिलर की लंबाई के बीच में एक बड़ी खरोंच दिखाई देती है, करीब 13 फुट के पास। खंभे पर यह निशान बहुत पास से तोप का गोला दागने से बना था। नादिर शाह ने 1739 में दिल्ली आक्रमण के दौरान ऐसा करवाया था। उसे एक इस्लामिक स्थल पर यह हिन्दू प्रतीक पसंद नहीं आया।तोप के गोले से खंबे पर बस एक खरोंच आई, बाकी खंभा सही-सलामत खड़ा रहा। मगर वो तोप का गोला खंभे से टकराकर छिटक गया और पास ही बनी कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद को जाकर ध्वंस कर दिया। इसके बाद लौह स्तंभ को कोई नुकसान नहीं किया गया।
सका कारण जानने के लिए IIT कानपुर के प्रोफेसर ने 1998 में एक प्रयोग किया। IIT के प्रोफेसर डॉ. बालासुब्रमण्यम ने इस आयरन पिलर के लोहे की मटेरियल एनालिसिस की। इस विश्लेषण में पता चला कि स्तम्भ के लोहे को बनाते समय पिघले हुए कच्चा लोहा (Pig iron) में फ़ास्फ़रोस (Phosphorous) तत्व मिलाया गया था। इससे आयरन के अणु बांड नहीं बन पाए, जिसकी वजह से जंग लगने की गति हजारों गुना धीमी हो गयी। लौह स्तंभ में 98% आयरन है और कार्बन की मात्रा बहुत कम है, इतना शुद्ध स्टील बनाना बड़े आश्चर्य की बात है। यह खंभा गरम लोहे के 20-30 किलो के टुकड़ों को जोड़कर बनाया गया लेकिन खंभे में 1 भी जोड़ नहीं दिखता।