दाबहार एकवर्षीय या बहुवर्षीय शाकीय वनस्पति है जिसे भारत में आमतौर से बाग-बगीचों में सजावटी पौधे के रूप में गमलों अथवा भूमि पर उगाया जाता है। यह पौधा अफ्रिका महाद्वीप के मेडागास्कर देश का मूल निवासी है जहाँ यह उष्णकटिबन्धीय वर्षा वन में जंगली अवस्था में उगता है। विराट जैवविविधता वाले देश मेडागास्कर में इस वनस्पति की लगातार गिरती जनसंख्या के कारण अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ (आ.यू.सी.एन.) ने इसे संकटग्रस्त घोषित कर लाल ऑकड़ा किताब में सूचीबद्ध किया है। स्थानान्तरी कृषि इसकी गिरती जनसंख्या का प्रमुख कारण है।
सदाबहार नाम के अनुसार ही सदाबहार पौधा है जिसको उगाने से आस-पास में सदैव हरियाली बनी रहती है। कसैले स्वाद के कारण तृष्णभोजी जानवर इस पौधे का तिरस्कार करते हैं। सदाबहार पौधों के आस-पास कीट, फतिगें, बिच्छू तथा सर्प आदि नहीं फटकते (शायद सर्पगंधा समूह के क्षारों की उपस्थिति के कारण) जिससे पास-पड़ोस में सफाई बनी रहती है। सदाबहार की पत्तियाँ विघटन के दौरान मृदा में उपस्थित हानिकारक रोगाणुओं को नष्ट कर देती हैं।
सदाबहार की जड़ों में रक्त शर्करा को कम करने की विशेषता होती है। अतः पौधे का उपयोग मधुमेह के उपचार में किया जा सकता है। दक्षिण अफ्रीका में पौधे का उपयोग घरेलू नुस्खा के रूप में मधुमेह के उपचार में होता रहा है। पत्तियों के रस का उपयोग हड्डा डंक के उपचार में होता है। जड़ का उपयोग उदर टानिक के रूप में भी होता है। पत्तियों का सत्व मेनोरेजिया नामक बिमारी के उपचार में दिया जाता है। इस बिमारी में असाधारण रूप से अधिक मासिक धर्म होता है।