इस्लाम में पवित्र का महत्व।

in blurt •  3 years ago 

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इस्लाम एक प्राकृतिक धर्म है, यह मानव जाति के संपूर्ण जीवन का मार्गदर्शन करता है।इसमें समाज कल्याण और उच्च स्तरीय जीवन के लिए अनेक सुझाव दिए हैं। जिसमें एक स्वच्छता भी है। इस्लाम में प्रतिदिन पांच वक्त की नमाज अनिवार्य की गई है और नमाज स्वच्छता और सफाई के बिना अदर ही नहीं होती। स्वच्छता और सफाई को इस्लामी परिभाषा में शोहरत कहते हैं। इसके तीन प्रकार हैं:
(१) शारीरिक रूप से स्वच्छ होना।
(२) वस्त्र का स्वच्छ होना।
(३) स्थान का स्वच्छ होना।
जहां इस्लाम में अपने अनुयायियों को आध्यात्मिक शुद्धता का आदेश दिया है वहीं इस बात पर भी बल दिया है कि मुसलमान शारीरिक सफाई का ध्यान रखें। अल्लाह ताला फरमाता है : إن الله يحب التوابين و يحب المتطهرين ) البقرة:٢٢٢(अल्लाह तौबा करने वालों और पवित्र लाने वालों को प्रिय रखता है।
इस्लाम में स्वच्छता और सफाई का जो महत्व है उसका अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अल्लाह ने अंतिम पैगंबर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को अल्लाह ने जब लोगों के मर्द मार्गदर्शन के महत्वपूर्ण कार्य पर लगाया उस समय अल्लाह ने उन्हें जो आदेश दिया उनमें से एक आदेश सफाई और पवित्रता का भी था।
अतः फरमाय:
"ياايهاالمدثر. قم فانذر. وربك فكبر. وثيابك فطهر. والرجز فاهجر")سوره المدثر: ١٠٥(एक चादर ओढ़ने वालों! उठिए और लोगों को डराइए, और अपने रब की बढ़ाई बयान कीजिए और अपने कपड़े पाक रखिए भ बुतों से अलग हो जाइए।
तोबा और बाकी वह सफाई में परस्पर बड़ा गहरा संबंध है। तो वह इंसान को अंदर से पाक साफ करती है और सफाई बाहर से। यानी तो मन को पाक करती है और सफाई तन को।
इस्लाम में जितनी की आदतें और धार्मिक कार्य है उनको अदा करने से पूर्व सफाई सुथराई अनिवार्य है। पाक साफ हुए बगैर कोई इबादत आधा ही नहीं होती है और ना ही अल्लाह के निकट स्वीकार होती है।इस्लाम की एक विशेषता यह है कि इसमें केवल ऊपरी सफाई सुधराई पर ही बल नहीं दिया, बल्कि वास्तविक पवित्रता की अवधारणा भी पेश की है। यह कहना अधिक उचित होगा कि इस्लाम ने अपने अनुयायियों को पवित्रता प्रदान की है।
व्यक्तिगत स्वच्छता के विषय में इस्लाम में पवित्रता और स्वच्छता पर विशेष बल दिया गया है। निसंदेह, हर समाज के धार्मिक विश्वास, समाज के नागरिकों के स्वास्थ्य और स्वच्छता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस्लाम धर्म में आचरण की शुद्धता, मानसिक एवं शारीरिक स्वच्छता को बहुत महत्व दिया गया है। कुरान में जगह-जगह इन से जुड़े नियमों का उल्लेख है।

     पवित्रता पर बल:
  इस्लाम का उदय रेगिस्तानी क्षेत्र में हुआ जहां जल की उपलब्धता वैसी नहीं थी जैसी कि हमारे देश में है। अतः स्वच्छता संबंधी अनुष्ठानों को पूरा करने के लिए पाक नापाक की अवधारणा  का उदय हुआ।जिस प्रकार वैदिक संस्कृति में शारीरिक शुद्धता के लिए स्नान पर बल दिया गया है इसी प्रकार रेगिस्तानी क्षेत्र में प्रतिदिन सुबह उठते ही स्नान शायद सभी के लिए संभव ना रहा हो इसलिए वहां पर शुद्ध रहना अनिवार्य किया गया था। शारीरिक शुद्धता प्राप्त करने के लिए इस्लाम में कई पर क्रियाएं हैं जिनका नियम पूर्वक पालन करना होता है। तहारत प्राप्त करने के लिए अनेक पर क्रियाएं हैं। जिनके द्वारा शुद्ध हुआ जा सकता है।
 (१) वजु (२) स्नान (३) इस्तंजा (४) यौन स्वच्छता से संबंधित नियम (५) दांत स्वच्छता से संबंधित नियम। भारत के विषय में कुरान की आयत: "وينزل عليكم من السماء ماء ليطهركم به")الانفال:١١(

अल्लाह ने आकाश से जल्द उतारा था कि तुम उससे कहा रात प्राप्त करो।
हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहू अलही वसल्लम ने स्वच्छता के महत्व को समझाते हुए फरमाया
:"الطهاره نصف الايمان"
नमाज से पहले हाथ मुंह धोने के विशेष तरीके को पूज कहते हैंअल्लाह ताला ने फरमाया ईमान वालों जब नमाज के लिए खड़े हो तो अपने चेहरे को और अपने हथेली को कहानियों तक धो लो और अपने सिरों को मसा कर लो और अपने दोनों पैरों के नाखूनों तक धो लो और यदि तुमआप अभी तक तो हो तो पार्क हो लो और यदि तुम बीमार हो या यात्रा में हो तो तुम में से कोई पिशाब पखाना कर के आए या तुमने औरतों से संभोग संभोग किया हो और जब उपलब्ध ना हो तो स्वच्छ मिट्टी से तय कर लो तुम अपने चेहरे और दोनों हाथों पर उससे यह साफ कर लो।

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