आरम्भ गुर्वी क्षयणी क्रमेण
लघ्वी पुरा दीर्घमुपैति पश्चात् |
दिनस्य पूर्वार्धपरार्ध भिन्ना
छायेव मैत्री खलसज्जनानाम् || -भर्तृहरि (नीति शतक )
भावार्थ - सूर्य के प्रकाश से उत्पन्न छाया दिन के पूर्वार्ध
(सूर्योदय से मध्याहन तक) और परार्ध (मध्याह्न से सूर्यास्त )
में अलग प्रकार की होती है | पूर्वार्ध में पहले वह् बहुत लम्बी
होती है और क्रमशः छोटी होती जाती है | मध्याह्न के पश्चात्
शीघ्र ही वह् पुनः बडी होने लगती है | इसी प्रकार से दुष्ट और
सज्जन व्यक्तियों से की गयी मित्रता भी प्रभावित होती है |
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