क्रोध वह अग्निकुंड जो आपके हाँथो स्वयं आपकी आहूति करवा देता है,
इस दुनिया में कुछ भी स्थाई रहने जैसा नहीं है शिवाय शब्द के शब्दों की यात्रा चिरकाल तक निरंतर चलती है इसका अंत नहीं है अनंत है।
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